आज से कुछ साल पहले WIFI नाम की कोई चीज़ नहीं थी लेकिन आज की टेक्नोलॉजी की दुनिया में Wifi एक अहम हिस्सा बन गया है.चाहे वो मोबाइल हो या कंप्यूटर wifi को आज हम सब इस्तेमाल करते है.
आप ने कभी ये सोचा के कैसे बिना तार के इंटरनेट को हम इस्तेमाल कर रहे है.
Early research :
Wifi को ऑस्ट्रेलिया (Australia) के रहनेवाले रेडियो Astronomer जॉन ओ सुल्लिवान (John O’ Sullivan) और उनके साथियों ने मिलकर आविष्कार किया था. उस वक़्त ये Commonwealth Scientific and industrial research organisation (CSIRO ) के लिए काम किया करते थे.
ये टीम पहले Exploding Mini black hole के बारे में प्रयोग कर रही थी. इस black hole से अलग अलग स्पीड के Waves को एक ट्रैक पर लाने की कोशिश चल रही ही.
जिसके लिए mathematical equation “fourier transform” को इस्तेमाल किया गया था. काफी सारी मेहनत के बाद भी ये प्रयोग विफल हो गया और यही fourier transform equation बाद में Wifi के आविष्कार में बहुत मदद गार बना.
साल 1990 में CSIRO की ये टीम ने सोचा के हर बार Wire से इंटरनेट पर जुड़ा रहना बड़ा मुश्किल है इसलिए उन्होंने सोचा के ऐसा आविष्कार किया जाना चाहिए जिस से wireless तरीके से इंटरनेट पर जुड़ने में आसानी पैदा होगी.
पहली बार जब सिगनल एक डिवाइस से दूरी डिवाइस को भेजा जाता थो काफी सारा डाटा मिस हो जाता. क्यूँ की Wifi radio signals के आधार पर चलता है. इसलिए जब इन signals के बीच कोई चीज़ जैसा के दीवार आ जाती तो ठीक से information पहुंचा नहीं पाता था. जिसे echo या reverberation कहते है.
Fourier transform equation :
उस वक्त दुनिया में और भी जगाओं पर वैज्ञानिक काम कर रहे थे. लेकिन कोई भी नतीजे तक पहुँच नहीं सका था. अब CSIRO टीम को कुछ ऐसा तरीका चाहिए था जिस से data loss भी न हो और तेज़ी से पहुँच भी जा सके.
इसके लिए signals को छोटे छोटे कई सारे हिस्सों में बँट देते और हर हिस्से के कही सारे copies बनाकर भेज देते थे. Receiver के तरफ fourier transform equation को इस्तेमाल करके data कलेक्ट करलेते थे.
इसके बाद काफी हद तक data एक device से दूसरे device को पहुँच जाता लेकिन अभी भी कुछ errors बाकी थे. Data का कुछ हिस्सा ही दूसरी तरफ पहुँच पाता.
बहुत सारा रिसर्च के बाद इस टीम ने error correction तकनीक का इस्तेमाल करना शुरू किया.इस तकनीक को इस्तेमाल करने के बाद 1993 में एक दिन ऐसा आया के ज़ीरो errors के साथ data transfer होने लगा जो आगे जाकर पूरे दुनिया में बहुत बड़ा बदलाव लाने वाला था.
CSIRO vs Tech companies :
लेकिन उस वक्त इस तकनीक को इस्तेमाल करना बड़ा मुश्किल था क्यूँ की इतनी हाई स्पीड chips नहीं थे. 1996 में इस आविष्कार को लाइसेंस (Patent) मिल गया.
1999 में IEEE में इस आविष्कार के बारे में लिखा गया और इस आविष्कार को बहुत सारे लोगों ने बेस्ट भी बताया. जैसे ही इस आविष्कार के बारे में Tech companies को पता चला इस तकनीक को इस्तेमाल करके बहुत सारे products बनाना शुरू कर दिया. साल 2001 में बिना CSIRO टीम permission के बहुत सारे products बाजार में आना शुरू हो गये.
CSIRO ने उन सारे companies पर मुकदमा चलाया जो बिना permission के इस्तेमाल कर रहे थे जिस में Dell, Intel, Microsoft, Apple जैसे बहुत सारे बड़े बड़े companies थे.
ये सब companies इस इलज़ाम को साफ़ मना कर दिया और कोर्ट में केस चला. 2007 में CSIRO ने इस केस को जीता और 2012 में 220$ Million डॉलर के साथ समझौता किया.
इस आविष्कार को सिर्फ एक radio frequency नाम के साथ जाना जाता था. Interbrand नामी advertising company ने सोचा के कुछ ऐसा नाम इस आविष्कार को देना चाहिए जो बोलने और सुनने में अच्छा लगे. अंत में इस आविष्कार का नाम Wifi रखा गया और यही कंपनी इसका लोगो भी बना दिया.