ज़माने से ही इंसान की ज़िंदगी में सबसे अहम चीज़ पैसा रहा है. इस पैसे के लिए कुछ लोग जागड़ा किया थो कुछ लोगों ने एक दूसरे की जान लेली. ये पैसा शुरू कहा से हुआ और आज जो पेपर कर्रंसी का हम उपयोग करते है वो हम तक कैसे पहुंचा ??
इस बात को जानने के लिए बहुत पहले गुज़रा हुआ ज़माने में जाना पड़ेगा. इंसान धीरे धीरे अपनी सब कामों को बेहतर से बेहतर बनाते आरहा है, जैसा के पहले इंसान के पहनने के लिए कपड़ा नहीं था सिर्फ पत्तों से काम चलाया करते और सवारी भी आज जैसी नहीं थी सिर्फ जानवरों का उपयोग करते थे. इसी तरह पैसे के साथ भी हुआ है.
सबसे पहले इंसान बार्टर सिस्टम का उपयोग करते थे. जिसका मतलब अगर आपके पास बकरी है और आपको घोड़ा चाहिए थो आप जिसके पास घोड़ा है उसके पास जायेंगे अपनी बकरी उसे देकर घोड़ा ले लेंगे लेकिन इससे ख़रीदार और बेचने वाले को बहुत सारा नुक्सान होता था. इस बार्टर सिस्टम के लिए आप के पास जो चीज़ है वो सामने वाले इंसान को भी उसकी ज़रूरत होना चाहिए.
इस सिस्टम के बाद कुछ जगहों में गिफ्ट सिस्टम चला जिसमे आप के पास जो चीज़े है आप अपने समुदाय के लोगों को दे देंगे लेकिन बदले में वो कुछ नहीं देंगे पर अगर उनके पास कोई चीज़ होगी थो वो भी पूरे समुदाय के लोगों में बँट देंगे.
अब ये सिस्टम से भी बहुत सारे परेशानियाँ उठानी पड़ी, अब इसके बाद ख़रीददारी के लिए जानवरों को कौड़ियों को और नमक जैसी चीज़ों का उपयोग किया गया.
अब ये भी तरीक़ा नाकाम रहा लेकिन egypt में सोना और सिल्वर को ख़रीददारी के लिए उपयोग किया गया लेकिन हर वक़्त सोना और सिल्वर को साथ में रखना मुश्किल था.
इसके बाद सबसे पहले 650bc में lydia में कॉइन्स की कर्रेंसी को बनाया गया सब उसको पसंद भी किया. 1000 bc में चीन में भी कॉइन्स को ख़रीददारी के लिए बनाया गया और उस पर मुद्रण भी किया गया था.
अब ख़रीददारी के लिए कॉइन्स थो थे लेकिन ख़रीददारी के बाद receipt के लिए 12 वि सदी में tallystick का उपयोग किया गया था. क्यों की उस ज़माने में पेपर महंगा था इसलिए छोटी लकड़ी के टुकड़े का उपयोग करते थे. जिस पर निशान लगाया करते थे और कुछ लिखना हो उसके ऊपर लिख देते, और ख़रीददारी के बाद इस लकड़ी के दो टुकड़े कर देते एक टुकड़ा बेचने वाला और एक टुकड़ा खरीदने वाला रख लेते.
इसके बाद goldsmith बैंकिंग इंग्लैंड में 16 वि सदी में शुरुवाद हुई, क्यों की सोना हमेशा साथ में रखना और उससे ख़रीददारी करना मुश्किल था इसलिए अपना सोना प्राइवेट बैंकर्स के पास जमा करवा देते और reciept ले लेते और यही reciept को लेकर चीज़ों की ख़रीददारी करते थे.
जैसा जैसा पेपर सब जगह बनने लगा तब tally stick की जगह bill of exchange का उपयोग करने लगे थे. Bill of exchange भी tally stick की तरह ही है. इसके कुछ फायदे ये है के ये उस ज़माने का क्रेडिट कार्ड था. ख़रीददारी के बाद ख़रीदार को दिए गए टाइम के अंदर पैसे जमा करवाना होता था. जैसा आज बैंक्स क्रेडिट कार्ड users को टाइम देते है.
एक और फायदा ये भी था bill of exchange के माध्यम से एक बार व्यापारियों ने कोई चीज़ ख़रीद ली या बेच दी तो पैसा bill of exchange के माध्यम से लेते, जैसा आज हम बैंक अकाउंट में ट्रांसफर करवा लेते है वैसे ही जिस शहर में ख़रीददारी हुई वहां पैसे जमा करवा देते और bill of exchange लेकर अपने शहर जाकर पैसे ले लेते. इस तारीख़े से पैसा चोरी होने से भी बच जाता और पैसे को हमेशा साथ में रखना नहीं पड़ता था.
कॉइन्स को हमेशा साथ में रखना बड़ा मुश्किल था इसलिए 11 वी सदी में चीन में सबसे पहले पेपर करेंसी बनायीं गयी और उसके बाद धीरे धीरे 17 वि सदी में यूरोप में भी पेपर कर्रेंसी सब जगह दिखने लगी.
हिंदुस्तान में सबसे पहले 1861 में पेपर करेंसी शुरू हुई थी थो इस तरह करेंसी की शुरुवाद हुई.