दुनिया में पहले टेलीग्राफ, रेडियो, वॉकी टॉकी, टेलीफोन, फिर मोबाइल फ़ोन का अविष्कार हुआ था. मोबाइल फ़ोन के अविष्कार होने के बाद नेटवर्क सिस्टम आम होने लगा.
पहले ज़माने में मोबाइल फ़ोन सिर्फ 4 पहिये के गाड़ियों में हुआ करते थे. एक जगह से दूसरे जगह जाने के बाद भी नेटवर्क कनेक्ट रहने के लिए हेक्सागोनल तकनीक को भी इस्तेमाल किया गया था.
एक ज़माना था जहां सिर्फ पैसे वाले लोगों के पास मोबाइल फ़ोन हुआ करते थे.पैसों के अलावा ये साइज में बहुत बड़े और वजन हुआ करते थे.
टेलीफोन के अविष्कार के बाद वैज्ञानिकों ने सोंचा के ऐसे फ़ोन बनाना चाहिए के अगर इंसान एक जगह से दूसरी जगह जाये तो आराम से इनका इस्तेमाल करसके.
मोबाइल फ़ोन के अविष्कार के बाद 1G से लेकर 5G तक अलग अलग जनरेशन के मोबाइल्स को हमने देखा है.
सिमकार्ड (SIM) किसे कहते है ?
सिमकार्ड का फुल फॉर्म है सब्सक्राइबर आइडेंटिफिकेशन मॉड्यूल (subscriber identity module). ये एक इंटीग्रेटेड सर्किट है जिसमे यूजर का इनफार्मेशन होता है.
जब आप सिमकार्ड खरीदते है तो कंपनी आपको IMSI ( International mobile subscriber identity) नंबर देती है जिस से कंपनी को अपने कस्टमर्स को पहचान थी है.
सिमकार्ड के द्वारा हम कॉल, मैसेज, इंटरनेट को इस्तेमाल करसकते है. इस सिमकार्ड में बहुत कम स्टोरेज होता है, सिमकार्ड में डाटा स्टोर करनेकी क्षमता अलग अलग प्रकार से होती है. सिमकार्ड में 8KB, 32KB, 64KB, 256KB के रूप से अलग अलग प्रकार के होते है.
सिमकार्ड का अविष्कार किसने किया ?
सिमकार्ड को गिज़ेक & देवरिएंट (Giesecke & Devrient) नाम की कंपनी ने साल 1991 में अविष्कार किया था. उस वक़्त दो तरह के सिमकार्डस को बनाया गया था.
पहले प्रकार का सिमकार्ड ATM कार्ड जितना बड़ा था, जो कार फ़ोन्स (Car phones) के लिए बनाया गया था. छोटे सिमकार्ड पोर्टेबल फ़ोन के लिए बनाया गया था.
जैसे जैसे मोबाइल फ़ोन में सुधार किये गए तो सिम में भी बदलाव आने लगा. 2010 मे माइक्रो सिम को बनाया गया था, 2012 में नैनो सिम को बनाया गया था. आजकल के स्मार्ट फ़ोन में नैनो सिम का ही ज़्यादातर इस्तेमाल होता है.
सिमकार्ड काम कैसे करता है ?
जैसा मैंने ऊपर बताया, हर सिमकार्ड में IMSI नंबर होता है, जिस से कम्पनी अपने कस्टमर को पहचानती है. सिमकार्ड कैसे काम करता है ये जान ने से पहले सिमकार्ड काम करने के लिए क्या क्या ज़रुरत होते है देखते है.
सिमकार्ड काम करने के लिए एक फ़ोन, सेल टावर, मोबाइल स्विचिंग सेंटर (MSC) की ज़रूरत होती है.
स्टेप 1: जब हम कॉल लगाते है तो हमारे फ़ोन वॉइस सिग्नल्स को डिजिटल सिग्नल में बदल देता है.
स्टेप 2 : डिजिटल सिग्नल को फ़ोन में रहने वाला ऐन्टेना इलेक्ट्रो मैग्नेटिक वेव्स के रूप में ट्रांसमिट करता है.
स्टेप 3 : इलेक्ट्रो मैग्नेटिक वेव्स ज़्यादा दूर तक ट्रेवल नहीं कर पाते. इन्हे एक जगह से दूसरी जगह को पहुँचाने के लिए सेल टावर का इस्तेमाल किया जाता है.
सेल टावर एक दूसरे से केबल के ज़रिये कनेक्ट हुए रहते है. ये केबल्स एक देश को दूसरे देश को मिलाते है. इन्ही जुड़े हुए केबल के कारण हम रोमिंग कॉल को करपाते है.
सेल टावर्स एक जगह को हेक्सागोनल शेप में बाँट लेते है. हेक्सागोनल सेल नेटवर्क को अच्छे तरह से ट्रांसमिट कर सकता है.
स्टेप 4 : सेल टावर सिग्नल को रिसीव करने के बाद उसे केबल के ज़रिये दूसरे टावर ( जिसे हम कॉल लगा रहे है ) को भेजता है. दूसरा टावर केबल से रिसीव किया सिग्नल को वापस इलेक्ट्रोमैग्नेटिक सिग्नल के रूप में ट्रांसमिट करता है.
स्टेप 5 : जिसे हमने कॉल लगया है उसका फ़ोन सेल टावर से आया हुआ इलेक्ट्रोमैग्नेटिक सिग्नल को वॉइस सिग्नल में बदल देता है.
इतना सारा प्रॉसेस बस कुछ ही देर में होजाता है.
eSIM :
आप अगर टेक्नोलॉजी में रूचि रखते हो तो eSIM के बारे में सुना होगा. ये सिम अभी के सिम के मुक़ाबले में एडवांस्ड है. इस सिम के लिए प्लास्टिक के टुकड़े की ज़रुरत नहीं होती.
ये एक प्रोग्राम किया हुआ सिमकार्ड होगा. वैज्ञानिको का मान न है के अगर प्लास्टिक सिमकार्ड के बदले में एक प्रोग्रामेबल सिम बनाये तो हम रिमोटली कनेक्ट करसकते है.
इस तकनीक से प्लास्टिक पोल्लुशण कम हो जायेगा और आसानी से सिमकार्ड को बदल भी सकते है.
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