शुरू ज़माने में लोग पेपर के अविष्कार के बाद ज़रूरी चीज़ों को लिखने के लिए पेपर का इस्तेमाल करना शुरू किया था.
वक़्त के सात जब टेक्नोलॉजी और लिखने की ज़रुरत बढ़ने लगी तो लोगों ने ये महसूस किया के हात से लिखने में बहुत सारा वक़्त लगता है. अगर तेज़ी के सात लिखें तो समझने में मुश्किल हो जाता है.
एक तरफ टेलीग्राफ का इस्तेमाल भी धीरे धीरे बढ़ रहा था और लोग मोर्स कोड के मेसेजस को भी पेपर पर लिखना शुरू किया था.
लोगों के दिमाग ये आईडिया आया कि एक ऐसा टाइपिंग मशीन बनाना चाहिए जिस के ज़रिये पेपर पर लिखना आसान हो जाये.
इतिहास (History) :
16 वीं सदी से लेकर 18 वि सदी तक अलग अलग वैज्ञानिक और आविष्कारक ने मिलकर टाइपराइटर को बनाने की कोशिश की थी.
कुछ वैज्ञानिक ने ये भी कोशिश की के एक ऐसा टाइपराइटर बनाना चाहिए जिसकी मदत से अंधे लोगों को लिखने में मदत मिल जाए.
ये सब टाइपराइटर सक्सेसफुल तो नहीं थे बल्कि दूसरे वैज्ञानिकों के लिए मदतगार साबित हुए.
19 वीं सदी में विलियम ऑस्टिन बर्ट (William Austin Burt) नाम के अविष्कारक ने पहली बार टाइपिंग मशीन “ टाइपोग्राफर ” (Typographer) नाम से आविष्कार किया था.
ये मशीन इतनी स्लो थी के हात से लिखने वाले भी इससे तेज़ लिख लेते थे.
19 वीं सदी में यूरोप और अमेरिका में कई लोगों ने टाइपराइटर को बनाया और पेटेंट भी मिला लेकिन कभी इन्हें कमर्शियल के रूप से इस्तेमाल नहीं किया गया.
मतलब न इसको किसीने खरीदा नाही ये तेज़ लिखने में मदत करता.
पहला कमर्शियल टाइपराइटर :
1865 में रासमस मल्लिँग-हँसें (Rasmus Malling-Hansen) नाम के डेनमार्क के अविष्कारक ने हँसें राइटिंग बॉल (Hansen Writing Ball) नाम के टाइपराइटर को अविष्कार किया था. ये टाइपराइटर सबसे पहला कमर्शियल टाइपराइटर है.
इस टाइपराइटर को यूरोप में लोग खरीदकर इस्तेमाल करने लगे, सबसे ज़्यादा इनका इस्तेमाल ऑफिसेस में हुआ करता था.
ये टाइपराइटर एक बॉल के शेप में होता है, सबसे ऊपर के हिस्से में बटन्स और नीचे के हिस्से में पेपर होता था.
इस टाइपराइटर में सिर्फ उपपरकेस लेटर्स को ही लिखसकते थे, लोअरकेस लेटर्स और नंबर्स स्पेशल करेक्टॅर्स भी नहीं हुआ करते थे.
Sholes and Glidden Type-Writer :
साल 1868 में क्रिस्टोफर लाथम शोल्स (Christopher Latham Sholes), फ्रैंक हैवन हॉल (Frank Haven Hall), शमूएल व. सौल (Samuel W. Soule) और कार्लोस ग्लिड्डें (Carlos Glidden) नाम के आविष्कारकों ने मिलकर एक ऐसे टाइपराइटर को बनाया जो लोगों को बहुत पसंद आया था और ज़्यादा इस्तेमाल में भी आरहा था
इस टाइपराइटर में क्वर्टी कीबोर्ड (Qwerty keyboard) था जो आज के कीबोर्ड्स में भी इस्तेमाल किया जाता है.
इस क्वर्टी कीबोर्ड को इसलिए बनाया गया था ताकि ज़्यादा इस्तेमाल में आनेवाली कीस एक तरफ कम इस्तेमाल में आनेवाली कीस एक तरफ कर दिया गया था.
ये सारे टाइपराइटर मैकेनिकल थे इसलिये कभी कभी टाइप करने में बटन्स फस जाते थे. क्वर्टी कीबोर्ड के बाद टाइपिंग करना आसान होगया था.
इस टाइपराइटर के नाम में ही टाइपराइटर होने की वजह से लोग टाइप करने वाले डिवाइस को टाइपराइटर के नाम से बुलाना शुरू किया था.
ये टाइपराइटर काफी अच्छा था लेकिन टाइप करते समय उपस्ट्राइक मेकनिज़म की वजह से टाइप करने वाले इंसान को क्या टाइप हो रहा है वो दीख नहीं पता था.
मॉडर्न टाइपराइटर :
19 वीं सदी में टाइपराइटर में सुधार किये गए, उपस्ट्राइक के जगह फ्रंट स्ट्राइकिंग मेथड का इस्तेमाल किया गया था. फ्रंट स्ट्राइकिंग तकनीक से क्या टाइप होरहा है टाइप करने वाला इंसान चेक करसकता था.
शिफ्ट की को कीबोर्ड में शामिल करना भी सबसे बड़ा बदलाव था. लोअर केस और उपपर केस लेटर्स को शिफ्ट के ज़रिये बदल दिया जा सकता था.
शिफ्ट (Shift) की के सात टयाब (TAB) की को भी जोड़ दिया था ताकि टाइप करने वाले इंसान को अपनी सहूलत से टयाब स्टॉप्स (Tab stops)को रखने में आसानी पैदा हुई.
शुरू के टाइपराइटर में कलर चेंज करने वाला ऑप्शन भी हुआ करता था, ज़्यादा से ज़्यादा 3 कलर चेंज करनेका ऑप्शन होता था.
वक़्त के सात इलेक्ट्रिक टाइपराइटर भी बनना शुरू किया गया था. हम जब जानते ही है जैसे ही कम्प्यूटर्स हमारी ज़िन्दगी में आना शुरू हुए तो काफी सारे फीचर्स के आया था, जिसमे एक फीचर टाइप राइटर भी है.