हमारे पूर्वजों को दुनिया में सबसे बारीक चीज़ या छोटी चीज़ वही थी जो बस आँखों से दिख गाया जैसा के बाल, छोटे से कीड़े, रेत के कण वगैरा वगैरा.
दुनिया कई सारे चीज़ें ऐसे है जो हमारे आँखों के लिए दीखते नहीं है लेकिन वो होते है इसका पता तो मिक्रोस्कॉपी केआविष्कार के बाद ही पता चला.
किसी ने खूब कहा है के ये दुनिया बहुत ख़ूबसूरत है. हमारी ऑंखें हर दिन दुनिया की और आसमान की खूबसूरति को देखती है. हम ये बात तो ज़रूर मानते है के हम हर चीज को नहीं देख सकते .
अंतरिक्ष में रहने वाले हज़ारों प्लैनेट्स, स्टार्स, ब्लैक होल्स हमारी आँखों से काफी दूर है. इसी लिए उन दूर की चीज़ों को देखने के लिए हम टेलिस्कोप का इस्तेमाल करते है, जो दूर के चीज़ों के बारे में जान ने में मदत करता है.
बिलकुल इसी तरह हमारी आँखे एक दम छोटी चीज़ों को भी नहीं देख सकती. मिसाल के तौर पर कीटाणु, बैक्टीरिया और वायरस जैसे जीव हमारे आसपास करोड़ों के संख्या में होते है.
हमारे शरीर पर और हमारे आसपास इतने सूक्ष्म जीव होते है जिन्हे हम देख नहि सकते. लेकिन वो भी जी रहे है और हम इंसानो को फायदा या नुक्सान पहुंचाते रहते है.
शायद ऊपर वाले की मर्ज़ी है इसी लिए हम कुछ हदतक ही देखपाते है, अगर हम छोटी चीज़ को देखलेते तो हमारा जीना मुश्किल हो जाता.
इतिहास (History) :
इंसान बहुत पहलेसे ऐसी चीज़ों को इस्तेमाल करते थे, जिनका उपयोग करके चीज़ों के अकार को बढ़ा करके देख़ते थे.
4000 BC में ग्रीक्स के ज़माने में पानी से भरे गोले का इस्तेमाल करके चीज़ों को देखते थे.
13 वि सदी में चश्मे में इस्तेमाल किये जाने वाले लेन्सेस को देखने के बाद लोग माइक्रोस्कोप को बनाने केलिए कोशिश करने लगे थे.
अविष्कार :
दुनिया का सबसे पहला माइक्रोस्कोप को 1590 में बनाया गया था, जिसे कंपाउंड माइक्रोस्कोप ( Compound microscope ) के नाम से जाना जाता था. अब इसे किसने अविष्कार किया ये कहना मुश्किल है क्यों की कुछ लोगों का मन न है के Hans Martens ने बनाया और कुछ लोगों का मन न है के Zacharias Janssen ने बनाया है.
पहले किये गए अविष्कार को देख कर बाद में बेहतर से बेहतर माइक्रोस्कोप को बनाना शुरू करदिया था.
माइक्रोस्कोप एक चीज़ को 10 से लेकर 1000 गुना बढ़ा करके दिखाने की क्षमता रखता है. माइक्रोस्कोप के लिए सनलाइट या फिर बल्ब की लाइट की ज़रुरत होती है.
माइक्रोस्कोप काम कैसे करता है ?
माइक्रोस्कोप के निचले हिस्से में एक मिर्रोर होता है, जिस पर लाइट की किरणे पड़ती है. ये लाइट की किरणे उस चीज़ से होकर गुज़रते है जिसे हमें देखना है.
देखे जाने वाले ऑब्जेक्ट को हम स्पेसिमेन कहते है. मिसाल के तौर पर हम ने एक छोटा सा पत्ते का टुकड़ा लिया है तो इसे हम स्पेसिमेन बोलेंगे.
लाइट स्पेसिमेन से होकर ट्यूब से गुज़रती है, ये ट्यूब इस तरह बना हुआ होता है के लाइट रिफ्लेक्ट होकर स्पेसिमेन के अकार को बढ़ा करके दिखती है.
हम अपनी आँखों से इस बढ़ा हुआ अकार को देख सकते है, लेन्सेस की मदत से हम कितना ज़ूम करना चहरहे है वो भी कर सकते है.
टेक्नोलॉजी बड़ जानेके बाद अलग अलग प्रकार के माइक्रोस्कोप को बनाना शुरू किया था. X-ray microscopes, Electron microscopes Super resolution microscopes, Scanning probe मिक्रोस्कोपस, Fluorescence microscopes नाम के अलग अलग प्रकार के माइक्रोस्कोप हमारे बीच मौजूद है.
नैनोटेक्नोलॉजी आने के बाद वैज्ञानिकों ने और भी छोटे चीज़ों के बारे में पढ़ना शुरू कर दिया है.
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