शुरू ज़माने में जब गन्स को बनाया गया था तो हर राउंड के बाद लोड करना पड़ता था. उस वक़्त एक आईडिया ये आया के क्यों न एक ऐसे गन को बनाया जाये जो बिना लोड किये आटोमेटिक शूट करे.
16 वि सदी के शुरू में ऑर्गन गन्स (Organ gun) से एक से ज़्यादा गोलियों को चलने के लिए इस्तेमाल किया जाता था.
17 वीं सदी में एशिया में चीन ने भी एक से ज़्यादा गोलियों को चलाने वाला बन्दूक को इस्तेमाल किया था.
18 वीं सदी में जेम्स पुखले नाम के लंदन के लॉयर ने दा पुखले गन (The puckle gun) के नाम का मशीन गन का अविष्कार किया था.
आज के मशीन गन का एक पुराना वर्शन हम इसे मान सकते है. साल 1831 में एक मिनट में 500 गोलियों को चलाने वाला गन को एक फ्रेंच मैकेनिक हमेल ने बनाया था.
19 वि सदी के बहुत सारे लोगों ने एक के बाद एक मशीन गन में बदलाव करते चलेगये और बेहतर करते गए.
1861 में रिचर्ड जॉर्डन गैटलिंग नाम के अविष्कारक ने एक ऐसा मशीन गन बनाया जिसे आसानी के सात कण्ट्रोल कर सके और तेज़ी के साथ चलने वाला मशीन गन को बनाया था. इस मशीन गन को अमेरिका के सिविल वॉर में इस्तेमाल किया गया था.
इस तरह के मशीन गन को बनाने के लिए पेटेंट भी मिला था.
1884 में सेल्फ-पॉवर्ड मशीन गन को सर हीराम मैक्सिम (Sir Hiram Maxim) नाम के अविष्कारक ने बनाया था. इस मशीन गन को ओवरहीट से बचने के लिए कूलिंग सिस्टम भी रखा गया था.
इस गन को पहले विश्व युद्ध में इस्तेमाल किया गया था क्यों कि इसे कम लोगों के ज़रिये चलाया जा सकता था.
मॉडर्न मशीन गन की अगर बात करे तो इसे तीन ग्रुप में अलग करदिया गया है.
1 दा लाइट मशीन गन है इसे बाइपोड (bipod) के ज़रिये इस्तेमाल किया जाता है. इस मशीन गन को संभल ने के लिए सिर्फ एक सैनिक ही काफी है.
2. मध्यम मशीन गन है जो एक बेल्ट के ज़रिये संभाला जाता है. इस गन को बाइपोड या ट्राइपॉड के ज़रिये इस्तेमाल किया जाता है.
3. हैवी मशीन गन है जो एक बेल्ट के ज़रिये संभाला जाता था और इसके लिए कई सैनिक की ज़रुरत पड़ती थी.