पेसमेकर के अविष्कार के बारे में बात करने से पहले ये कैसे काम करता है इसके बारे में जानते है. पेसमेकर एक इलेक्ट्रिकल डिवाइस है जो ठीक से न चलने वाली दिल की धड़कनों को अच्छेसे धड़कने में मदत करता है.
आज दुनिया में अक्सर लोग दिल के सम्भंदित बिमारियों का शिकार होते है. हमारा खाना पीना और दिन भर के काम की वजह से हम इन सब बिमारियों के हवाले होते रहते है.
इसी दौरान एक सबसे मुश्किल का सामना हम ये करते है के हमारा दिल ठीक से धड़कना छोड़ देता है. जब हमारा दिल खुदरति तौर से धड़कना बंद करता है तो पेसमेकर इस्तेमाल करता है.
पेसमेकर दिल को साधारण रूप से धड़कने में मदद करता है.
पेसमेकर का अविष्कार :
1889 जॉन एलेग्जेंडर मकविल्लिअम (John Alexander MacWilliam) नाम के वैज्ञानिक ने ये गौर किया के इलेक्ट्रिकल पल्सेस का इस्तेमाल करके दिल के धड़कने को कण्ट्रोल कर सकते है.
दुनिया के और भी वैज्ञानिक ने ऐसे डिवाइस पर काम करना शुरू किया था जिस का इस्तेमाल करके दिल के हार्ट बीट को कण्ट्रोल करसके.
साल 1932 में अल्बर्ट ह्यमन (Albert Hyman) नाम के अविष्कारक ने अपने भाई के साथ मिलकर एक इलेक्ट्रो मैकेनिकल इंस्ट्रूमेंट को बनाया था.
ह्यमन ने इसे आर्टिफिशियल पेसमेकर (Artificial pacemaker) नाम से बुलाना शुरू किया था. बाद में यही नाम फेमस होगया. आज भी इस नाम को इस्तेमाल करते है.
वक़्त के सात पेसमेकर में बदलाव करना शुरू किया गया था और बेहतर बनाने लगे थे.
ट्रांस्क्युटानेओस पेसिंग (Transcutaneous pacing) :
कनाडा के एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर जॉन हॉप्प्स (John Hopps ) ने साल 1950 में ट्रांस्क्युटानेओस पेसिंग को बनाया था. इस डिवाइस को पहलीबार कुत्ते पर इस्तेमाल किया गया था.
इंसान पर इस डिवाइस का इस्तेमाल किया गया तो देखा के इस प्रक्रिया से बहुत तकलीफ होती है. एक और अहम् बात ये थी के पेसमेकर का साइज इतना बड़ा होता था जिससे काफी परेशानी होती थी.
इस डिवाइस में AC करंट का इस्तेमाल करने की वजह से इलेक्ट्रिक शॉक लगने का डर हमेशा लगा हुआ रहता था.
हम सब ये बात तो जानते है ट्रांजिस्टर की वजह से काफी सारे इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस पहले ज़माने में बड़े होते थे, लेकिन सिलिकॉन ट्रांसिस्टर के बाद सारे डिवाइस एक दम से साइज में छोटे होने लग गए.
वेराबल पेसमेकर (Wearable pacemaker) :
अर्ल बैक्केन ( Earl Bakken) नाम के एक इंजीनियर ने एक ऐसा डिवाइस बनाया था जिसे इंसान अपने सीने पर पहन सकता है. इस डिवाइस को सबसे पहले एक 30 साल के महिला पर प्रोयोग किया गया था.
टेक्नोलॉजी तो हमेशा बढ़ते रहती है, पेसमेकर के अंदर और भी बदलाव आने लगे जिसके ज़रिये आसानियाँ पैदा होने लगी थी.
इम्प्लांटेबल पेसमेकर (Implantable pacemaker):
साल 1958 रूण एल्मकविस्ट (Rune Elmqvist) नाम के अविष्कारक ने पहलीबार पेसमेकर का अविष्कार किया था. इस डिवाइस को इंसान के शरीर में इम्प्लांट कर सकते है. शुरुवात में ये पेसमेकर कुछ वक़्त के बाद काम करना बंद करदेते थे. बाद में पेसमेकर में काफी सारे बदलाव किये गए.
पेसमेकर को सर्जरी के द्वारा इंसान शरीर में इम्प्लांट किया जाता है, ये पेसमेकर बैटरीज का इस्तेमाल करके चले थे. इन बैटरीज को इंडक्शन कएल का इस्तेमाल करके चार्ज किया जाता था.
बैटरी को चार्ज करने का काम हर कुछ दिन में दोहराना पड़ता था,जिसमे बहुत सारा वक़्त लगता था.
मर्क्युरी बैटरी को लिथियम बैटरी के सात बदल देने के बाद बैटरी की काफी हद तक बढ़गयी थी. बार बार रीचार्ज करने की ज़रुरत महसूस नहीं होती थी.
लिथियम की बैटरी 5 से 10 साल तक चलती थी. पेसमेकर का इस्तेमाल करने के बाद भी मौत तो एक दिन आना ही है.
पेसमेकर को इस्तेमाल करने वाले मर जाने के बाद इनके शरीर से इस पेसमेकर को निकालकर ज़रुरत मंद लोगों को दिया जाता था.
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