अंतरिक्ष मे अनगिनत प्लैनेट्स में से हमारा भी एक खूबसूरत प्लेनेट है जहां हवा पानी के सहारे हम सब अपनी ज़िन्दगी को गुज़ार रहे है.इंसान ने ज़रूर अपनी सहूलत के लिए बहुत सारी टेक्नोलॉजी का आविष्कार किया है. एक देश दूसरे देश के हमले से बचने के लिए अपनी अपनी आर्मी को भी बनालिया है.
शायद पृध्वी को इतना खतरा किसी चीज़ से नही है जितना नुक्लेअर वेपन से है. क्यूँ की नुक्लेअर वेपन इंसान को ही नहीं बल्कि पृध्वी के हवा और पानी को भी नष्ट कर देता है.
आज कल हम देखते है के एक देश दूसरे देश को नुक्लेअर वेपन से हमला करने की धमकी देते रहते है. आखिर किसने इस नुक्लेअर वेपन को बनाया और क्यों इसे बनाना पड़ा?
यूरेनियम (Uranium) :
नुक्लेअर बम बनाने में जो सबसे खास केमिकल जो होता है वो है यूरेनियम. 1898 में यूरेनियम की खोज की गयी थी. उस वक़्त एक और चीज़ ये गौर किया गया था, यूरेनियम केमिकल रिएक्शन के बाद रेडिएशन के साथ दूसरे केमिकल्स में बदल जाता है.
बस इस चीज़ के खोज के बाद वैज्ञानिक इस केमिकल अंदाज़ा लग गया था के ये गलत हातों में जानेसे कितना आतंक मचासकता है. जर्मनी में जब नाज़ी के लोग सत्ता में आने लगे और जितने भी यहूदी लोगों को जान से मार रहे थे. नाज़ी सिर्फ जर्मनी में नहीं बल्कि जर्मनी से बहार निकल कर दूसरे मुल्क पर हमला करना शुरू करदिया था.
Leó Szilárd नाम के एक वैज्ञानिक ने न्यूट्रोंस के द्वारा किये जानेवाले नुक्लेअर फिशन को पेटेंट किया था. 1934 में इसी नुक्लेअर फिजन ( nuclear fission) को लैब में किया गया आर्टिफीसियल रेडिओएक्टिवित्य ( Artificial radioactivity) में भी प्रयोग किया गया था.
1938 में एक खोज ये भी किया गया था के यूरेनियम न्यूट्रोंस के साथ मिलने के बाद बेरियम और क्रीप्टोण आटोमस में विभाजित होकर बहुत सारा एनर्जी और रेडिएशन को बनाता. इस प्रक्रिया को फिशन कहते है.
लोगों में दर :
नुक्लेअर फिशन कितना खतरनाक साबित हो सकता है उस वक़्त वैज्ञानिक को समझ में आगया था. एक और मज़े की बात ये है के इस नुक्लेअर बम बनाने में ज़्यादा रिसर्च जर्मनी के वैज्ञानिक ने ही किया था जो नाज़ी के दर से दूसरे मुल्कों में चले गए थे.
उस वक़्त ऐसा नहीं था की सिर्फ जर्मनी के बहार वैज्ञानिक नुक्लेअर वेपन की तैयारी कर रहे है. जर्मनी में भी नाज़ी इस बम को बनाने की कोशिश में लगे हुए थे.
इसी बात के डर से अल्बर्ट आइंस्टीन जैसे वैज्ञानिक ने उस वक़्त के अमेरिका के राष्ट्र पति को चेतावनी थी.
मैनहट्टन प्रोजेक्ट :
वैज्ञानिक को ये तो पता चलगया था के यूरेनियम कितना खतरनाक है लेकिन इसे कैसे एक बम के शकल में बनाये इसका अभी भी कोई जवाब नहीं था.
अमेरिका दूसरे विश्वयुद्द में शामिल होने के बाद ज. रोबर्ट ओप्पेन्हेइमेर (J. Robert Oppenheimer) नाम के वैज्ञानिक के अधीन मेंमैनहट्टन प्रोजेक्ट को शुरू किया गया. इस प्रोजेक्ट में ब्रिटैन,अमेरिका और कनाडा मिलकर काम करना शुरू किया.
इस प्रोजेक्ट के चलते 3 बम बनाए गए थे, जिनके नाम लिटिल बॉय, थिन मन और फैट मैन. 1945 में इन बॉम्ब्स को युद्ध में इस्तेमाल करनेसे पहले टेस्ट करना भी ज़रूरी था. जुलाई 16, 1945 में न्यू मेक्सिको के रेगिस्तान में इस बम को टेस्ट किया गया.
मेक्सिको में टेस्ट किये जाने वाले बम का नाम ट्रिनिटी रखागया था. ये बम फटनेके बाद 22 किलोटोन्स की ऊर्जा निकली थी. उस वक़्त तक कभी कोई बम ऐसा नहीं बनाया गया था.
अमेरिका ने इस बम को फेंकने से पहले जापान को चेतावनी भी दी थी के अगर जंग को नहीं रोका गया तो पूरी तबाही होगी. लेकिन जापान को इस बात की खबर नहीं थी कि अमेरिका ने नुक्लेअर वेपन बनालिया है.
अगस्त 6,1945 में यूरेनियम और प्लूटोनियम से बनाए गए लिटिल बॉय और फैट मैन को फेंका गया. इस अमेरिका के हमले में खरीब 2 लाख लोग मारे गए और कुछ लोग बाद में अलग अलग प्रकार के बीमारयों से मर गए.
वक़्त के साथ एक के बाद एक देश नुक्लेअर वेपन बनाने में लग गए, हमारे देश में भी खरीब 150 नुक्लेअर वेपन्स मौजूद है.