ट्रांजिस्टर नाम को हमने सुना होगा और देखा भी होगा, ट्रांजिस्टर इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस में इस्तेमाल किया जाता है, जिसके कारन इनका साइज छोटा करने में मदत मिलती है. ट्रांसिस्टर को स्विच की तरह इस्तेमाल किया जाता है.
अब सवाल ये आता है इसे अविष्कार किसने किया ?
इलेक्ट्रॉनिक इंडस्ट्री में ट्रांजिस्टर एक ऐसी डिवाइस है जो बहुत मदत करता है. 1925 में जूलियस एडगर लिलेंफेल्ड (Julius Edgar Lilienfeld ) नाम के वैज्ञानिक ने पहली बार फील्ड इफ़ेक्ट ट्रांजिस्टर कॉन्सेप्ट को बताया लेकिन ये सक्सेसफुल नहीं था.
अविष्कार के बारे में थोड़ी सी भी जानकारी रखने वालों को ये तो पता होगा के हर अविष्कार के पीछे कई सारे लोगों की मेहनत होती है.
ट्रांजिस्टर के बारे में जानने से पहले हमें कंडक्टर, इंसुलेटर, सेमीकंडक्टर के बारे में जान ना पड़ेगा.
कंडक्टर :
कंडक्टर इलेक्ट्रॉन्स को आसानी के सात प्रवाह होने देते है. सारे मेटल ऑब्जेक्ट्स कंडक्टर का उदाहरण है.
इंसुलेटर :
इंसुलेटर इलेक्ट्रॉन्स के प्रवाह को रोक देता है. रब्बर, पेपर, प्लास्टिक इंसुलेटर के अच्छे उदाहरण है.
सेमीकंडक्टर :
सेमिकंडक्टर, इंसुलेटर की तरह इलेक्ट्रॉन्स की प्रवाह को रोकता नहीं है और कंडक्टर की तरह इलेक्ट्रॉन्स को प्रवाह नहीं करता. ये इन दोनों के बीच में काम करता है. सिलिकॉन और जर्मेनियम इसके अच्छे उदाहरण है.
ट्रांजिस्टर का अविष्कार :
दुनिया का सबसे पहला ट्रांजिस्टर पॉइंट – कांटेक्ट ट्रांजिस्टर (point-contact transistor) के अविष्कार को बेल लैबोरेट्रीज में साल 1947 दिसंबर के महीने किया गया था. इस अविष्कार को विलियम शोकलेय (William Shockley) के नेतृत्व में जॉन बर्दीन (John Bardeen) और वॉटर ब्रट्टैन (Walter Brattain) नाम के 2 वैज्ञानिकों की मदत से बनाया गया था.
ट्रांजिस्टर के अविष्कार से पहले वैक्यूम ट्यूब का इस्तेमाल किया जाता था. ये भी एक ट्रांजिस्टर की तरह ही काम करता था लेकिन इसके लिए बहुत सी जगह होना पड़ती थी. वैक्यूम ट्यूब बहुत जल्द खराब भी हो जाते है. वैक्यूम ट्यूब को इस्तेमाल करने से इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस का साइज को छोटा नहीं करसकते.
इसी लिए दुनिया का सबसे पहला कंप्यूटर एक रूम जितना बड़ा था, क्यों की इसमें वैक्यूम ट्यूब का इस्तेमाल किया गया था.
बेल लैब्स में काफी सारे नाकाम कोशिशों के बाद ट्रांजिस्टर का जन्म हुआ था.
ट्रांजिस्टर कैसे काम करता है :
ट्रांजिस्टर को बनाने के लिए सेमीकंडक्टर की ज़रूरत होती है, जो एक स्विच की तरह काम करसके. ट्रांजिस्टर को जर्मेनियम या सिलिकॉन को लेकर बनाया जाता है.
ट्रांजिस्टर में 3 मुख्य भाग होते है जिन्हे कलेक्टर, एमिटर, बेस से बुलाया जाता है. NPN ट्रांजिस्टर में करंट कलेक्टर से एम्मिटर को प्रवाह होता है और PNP ट्रांजिस्टर में करंट एमिटर से कलेक्टर को प्रवाह होता है.
ट्रांजिस्टर कमज़ोर सिग्नल को एम्पलीफै करके मज़बूत सिग्नल में बदलता है, इसी वजह से हमारे फ़ोन कमज़ोर सिग्नल रिसीव करने के बावजूद स्ट्रांग सिग्नल हमें देता है.
ट्रांजिस्टर के स्विच आन और स्विच ऑफ 0 और 1 की तरह काम करता है. इसी तकनीक का इस्तेमाल करके मैथ्स के कैलक्युलेशन्स करते है.
ट्रांजिस्टर के नाम को सब से पहले John R. Pierce ने इस्तेमाल किया था. ट्रांसफर और वरिस्टोर दो नामों को जोड़कर ट्रांजिस्टर शब्द को बनाया गया था.
आज टेक्नोलॉजी बढ़ जाने के बाद ट्रांजिस्टर का साइज इतना छोटा कर दिया गया के एक फ़ोन में खरीब 2 बिलियन ट्रांसिसिटर्स को इस्तेमाल किया जाता है.
ट्रांजिस्टर के प्रकार :
ट्रांजिस्टर 2 तरह के होते है, 1. BJT 2. Field effect trasistor
फील्ड इफ़ेक्ट ट्रांजिस्टर फिर 2 तरह के होते है. 1. जंक्शन FET 2. मेटल ऑक्साइड सेमीकंडक्टर FET